शिक्षा एक ऐसी चीज़ है जो कभी व्यर्थ नहीं जाती। जीवन में कभी-कभी यह शिक्षा हमारे लिए बहुत लाभदायक होती है। छात्रों को शिक्षित बनाने के लिए सरकार विभिन्न कार्य भी कर रही है जैसे 6 से 14 वर्ष के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए योजनाएं ला रही है। लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है। स्कूल में शिक्षा प्रदान करना पर्याप्त नहीं है, उसके बाद क्या होगा। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में स्कूली स्तर पर किताबें आसानी से उपलब्ध हैं लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए नहीं। इस समस्या का समाधान करने के लिए उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कोटाबाग ब्लॉक में एक व्यक्ति। उन्होंने उन छात्रों को पढ़ाने की पहल की है जो कुछ क्षेत्रों के कारण स्कूल से वंचित हैं। कठिन परिस्थितियों और कठिन रास्तों के बीच वह अक्षर ज्ञान सिखा रहे हैं। हम आज आपको बता रहे हैं नैनिताल की घोड़ा लाइब्रेरी के बारे में।
जानिए किस संस्थान ने उठाया कितना अनोखा कदम, खोल दी घोड़े पर लाइब्रेरी
नैनीताल क्षेत्र में कुछ सुदूर गाँव हैं इसलिए छात्रों को किताबें उपलब्ध कराने के लिए घोड़ा पुस्तकालय की अवधारणा शुरू की गई। यह पहल हिमोत्थान संस्था द्वारा नैनीताल जिले के कोटाबाग ब्लॉक के कुछ दूरदराज के इलाकों के बच्चों तक पहुंचने के लिए शुरू की गई थी। विगत कुछ महीनों से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में यह घोड़ा पुस्तकालय छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ-साथ कई ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध कराने में सफल रहा है। जो उनके आने वाले भविष्य में बहुत काम आएगा।
यह घोड़ा पुस्तकालय कोटाबाग के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के ग्राम बघनी, छड़ा और जालना के युवाओं और स्थानीय शिक्षा प्रेरकों की मदद से शुरू किया गया है। जिसके माध्यम से “घोड़ा लाइब्रेरी” के माध्यम से दूरदराज के पहाड़ी गांवों तक किताबें पहुंचाई जा रही हैं, ताकि पहाड़ के बच्चे भी पढ़ने के लिए कुछ रोचक कहानियां और कविताएं पढ़ सकें, जो उनके ज्ञान को बढ़ाने में फायदेमंद होंगी।
जल्दी ही चौपाल लगाकर होगी पढाई
संस्थान के शिक्षा प्रेरक सुभाष बधानी ने बताया कि आज भी कोटाबाग के कई दूरस्थ क्षेत्र ऐसे हैं जहां इतने वर्षों के बाद भी जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाई हैं, सड़कों की हालत बेहद दयनीय है। जिसके कारण वहां रहने वाले बच्चों को पढ़ाई के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए हिमोत्थान संस्था ने कठिन परिस्थितियों में भी बच्चों तक किताबें पहुंचाने का बीड़ा उठाया और बिना किसी सड़क मार्ग के घोड़े के माध्यम से बच्चों तक किताबें पहुंचाईं।
किताबें पहुंचाने के अलावा उनकी ओर से चौपाल लगाकर बच्चों को कई शारीरिक गतिविधियां भी कराई जाती हैं, जो उनके बौद्धिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास दोनों के लिए काफी कारगर साबित होंगी। उन्होंने बताया कि इसके अलावा बच्चों को कहानियों और चित्रों के माध्यम से भी पढ़ाया जाता है ताकि उनका रचनात्मक विकास हो सके।