भारत त्योहारों का देश है, यहां हर क्षेत्र में हर साल अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। हर राज्य के रीति-रिवाजों और संस्कृति से जुड़े कुछ खास त्यौहार होते हैं। उत्तराखंड रहने वाले लोग इन सभी त्योहारों को एक साथ मिलकर मनाते हैं। लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए कई त्योहार मनाए जाते हैं। इसी तरह खुद को प्रकृति से जोड़े रखने के लिए विभिन्न पहाड़ी इलाकों में कई पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार उत्तरकाशी में मनाया जाता है, जिसे अथुरी उत्सव ( मक्खन होली ) कहा जाता है।
यह त्यौहार अत्यंत दुर्लभ है. अगस्त महीने में आपको होली खेलनी है तो आप इस त्योहार में हिस्सा ले सकते हैं. इस त्यौहार में होली खेली जाती है। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि ये होली रंग या गुलाल से नहीं बल्कि एक-दूसरे पर छाछ और दूध लगाकर खेली जाती है।
अथुरी त्यौहार पहाड़ों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। इसे बटर फेस्टिवल भी कहा जाता है. जिस प्रकार जन्माष्टमी पर महाराष्ट्र में दही-हांडी फोड़ी जाती है और बृज में दूध-दही की होली खेली जाती है, उसी प्रकार उत्तराखंड के दयारा बुग्याल में अंथूरी उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।इस साल यह त्योहार 16 और 17 अगस्त को मनाया जाएगा. इस त्यौहार को मनाने के लिए लोग खुली जगह पर इकट्ठा होते हैं और इस त्यौहार को मनाते हैं। इस त्योहार में लोग रंग या गुलाल की जगह एक-दूसरे पर दूध, दही और छाछ फेंककर होली खेलते हैं।
दरअसल, गर्मियों के दौरान यहां के लोग अपनी भेड़-बकरियों को दयारा बुग्याल, चिलपारा आदि छावनियों में घास चरने के लिए छोड़ देते हैं, जिसके बाद सर्दियों के दौरान वे अपने जानवरों को वापस अपने घरों में ले जाते हैं।लेकिन जानवरों को अपने घर वापस ले जाने से पहले वे प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए यह त्यौहार मनाते हैं जिसे अंथूरी उत्सव कहा जाता है। दयारा बुग्याल में आयोजित इस उत्सव में लगभग 500 गांवों के लोग भाग लेते हैं।
स्थानीय उत्तराखंडी बोली में बुग्याल का अर्थ घास का मैदान या चारागाह होता है। समुद्र तल से 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल राज्य के प्राचीन घास के मैदानों में से एक है। पहले यह त्योहार एक-दूसरे पर गोबर फेंककर मनाया जाता था। अब गाय के गोबर के स्थान पर दूध, मक्खन और छाछ का उपयोग किया जाता है।
उत्सव की शुरुआत अनुष्ठानिक प्रार्थनाओं के साथ हुई, जिसके बाद स्थानीय गांवों के पुरुषों और महिलाओं ने लोक वाद्ययंत्रों की धुनों पर नृत्य प्रस्तुत किया। पिछले कुछ वर्षों में यह त्यौहार उत्तराखंड के बाहर भी लोकप्रिय हो गया है। इस साल के बटर फेस्टिवल के दौरान दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों से पर्यटक मौजूद थे।