उत्तराखंड में स्थित देहरादून एयरपोर्ट उत्तराखंड के प्रमुख हवाई अड्डों में से एक है। यह बेस देश के प्रमुख शहरों के लिए हवाई सेवा प्रदान करता है। एक तरफ इस एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के तौर पर विकसित किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ एयरपोर्ट के पास हो रहे बेतरतीब निर्माण कार्य से एयरपोर्ट प्रशासन टेंशन में है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो देहरादून एयरपोर्ट का लाइसेंस भी खतरे में पड़ सकता है। इस संबंध में जिलाधिकारी को पत्र भेजने के बाद एयरपोर्ट प्रशासन ने आवास सचिव को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है।
जौलीग्रांट एयरपोर्ट को रेड सिग्नल क्यों दिया?
अब हम आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है। दरअसल, जौलीग्रांट के देहरादून एयरपोर्ट पर विमानों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए करीब 20 किलोमीटर के क्षेत्र को रेड, ऑरेंज और येलो जोन में बांटा गया है. एयरपोर्ट का सात किलोमीटर का हिस्सा रेड जोन, फिर ऑरेंज और फिर तीसरा हिस्सा येलो जोन है।
सभी प्रकार के विमानों और हेलीकॉप्टरों की लैंडिंग के लिए रेड जोन सबसे संवेदनशील है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ने तीनों जोन में किसी भी तरह के निर्माण कार्य के लिए अलग-अलग ऊंचाई तय की है। यहां निर्माण कार्य करने से पहले एयरपोर्ट से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना अनिवार्य है। साथ ही एमडीडीए से नक्शा भी पास कराना होगा। अनापत्ति प्रमाणपत्र के लिए आवेदन www.aai.airo.com पर ऑनलाइन किया जा सकता है।
एयरपोर्ट निदेशक प्रभाकर मिश्रा ने बताया कि एयरपोर्ट की एनओसी के बिना ही निर्माण कार्य धड़ल्ले से किया जा रहा है। मानक पूरे न होने पर डीजीसीए एयरपोर्ट का लाइसेंस भी रद्द कर सकता है। सख्त नियमों के बावजूद निर्माण कार्य के लिए एयरपोर्ट से अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं मिल रहा है। हवाई यात्रियों की सुरक्षा के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) हवाई अड्डे की निगरानी करता है। जिसमें एयरपोर्ट के पास से निर्धारित दूरी तक ऊंचे निर्माण कार्यों के मानक भी देखे जाते हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर एयरपोर्ट परिसर के आसपास इस तरह का अवैध निर्माण जारी रहा तो एयरपोर्ट का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।