पिथौरागढ़ उत्तराखंड का तीसरा सबसे बड़ा जिला है। इस जिले के कई स्थान आज भी अछूते हैं। ऐसे कई दूरस्थ स्थान हैं जहाँ आपको दिलचस्प कहानियाँ और चीज़ें मिल सकती हैं। मोस्टामानु मंदिर जो कि पिथौरागढ की सोर घाटी में स्थित है, इस शहर के सबसे दिव्य स्थानों में से एक माना जाता है। यह जगह इतनी रहस्यमयी है कि यहां विज्ञान के नियम भी फेल हो गए। विज्ञान के अनुसार उंगलियों के सहारे अकेले पत्थर उठाना बच्चों का खेल माना जाता है, लेकिन उस शिव मंदिर में विज्ञान का सिद्धांत भी फेल हो जाता है। आपको बता दें कि मोस्टा देवता को घाटी क्षेत्र में बारिश के देवता के रूप में पूजा जाता है। मोस्टामानू मंदिर परिसर में हर साल एक मेले का आयोजन किया जाता है, जहां पर रखे विशाल पत्थरों को उठाने की होड़ होती है।
ऐसा माना जाता है कि इस पत्थर को उठाने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है, जिसके कारण सुबह से ही युवा इस पत्थर को उठाने में लगे रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिनका हृदय शुद्ध होता है वे इन पत्थरों को आसानी से उठा सकते हैं। हर साल इनमें से कुछ को सफलता मिलती है तो कुछ को निराशा का सामना करना पड़ता है, लेकिन इस मेले में हर वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
मोस्टामानू मंदिर के परिसर में पहुंचते ही मन को असीम शांति मिलती है। यह मंदिर चारों तरफ से पर्वत चोटियों और चौड़ी घाटियों से घिरा हुआ है, यह मंदिर पूरी घाटी का दृश्य प्रस्तुत करता है। आपको बता दें कि इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा माना जाता है कि मोस्टादेवता बारिश के देवता हैं, उन्हें इंद्र का पुत्र माना जाता है। मान्यता है कि कालिका मोस्टा देवता की माता हैं। यह भी माना जाता है कि कालिका जी भगवान मोस्टा के साथ पृथ्वी पर निवास करती हैं।
इंद्र ने पृथ्वी लोक में अपना सुख प्राप्त करने के लिए मोस्टा को अपना उत्तराधिकारी बनाया। किंवदंतियों में कहा गया है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनियां, बावन वीर और आठ हजार मशान रहते हैं। कहा जाता है कि भुंटानी बयाल नाम का तूफ़ान उन्हीं के वश में है और वे जब चाहें इसे ला सकते हैं। शिव की तरह अगर मोस्टा देवता क्रोधित हो जाएं तो विनाश का कारण बनते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जिस पत्थर को उंगलियों की मदद से उठाया जा सकता है, उसे बड़े से बड़े ताकतवर आदमी भी नहीं उठा सकता और वह भी तब तक जब तक कि शिव के मंत्रों का जाप न किया जाए। लोगों का दावा है कि उस पत्थर को सबसे मजबूत व्यक्ति भी नहीं हिला सकता, जबकि महादेव का नाम लेकर कोई भी उसे अपनी उंगलियों पर उठा सकता है। ये चमत्कार है शिव के धाम में. उस मंत्र में है या उस पत्थर में है. वैज्ञानिक भी इसका पता नहीं लगा पाये।
कैसे पहुंचे मोस्टामानू मंदिर ?
आप कई परिवहन सुविधाओं का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच सकते हैं जैसे:
सड़क मार्ग से: मोस्टामानू मंदिर पिथौरागढ से 18 किमी की दूरी पर स्थित है। आप 2 घंटे की ट्रैकिंग करके वहां पहुंच सकते हैं। और स्थानीय बसों या कैब या टैक्सी द्वारा भी।
हवाई मार्ग से: मोस्टामानू मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंत नगर है जो मुख्य मंदिर से लगभग 213 किमी दूर है। आप टैक्सी या कैब से अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। स्थानीय बसें भी एक उपलब्ध विकल्प हैं।
- दिल्ली से मोस्टामानू मंदिर की दूरी: 404 KM
- देहरादून से मोस्टामानू मंदिर की दूरी: 220 KM
- हरिद्वार से मोस्टामानू मंदिर की दूरी: 250 KM
- काठगोदाम से मोस्टामानू मंदिर की दूरी: 275 KM
ट्रेन द्वारा: मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर रेलवे स्टेशन है, जो कि पिथौरागढ़ से 149 किमी दूर है। आप अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए टैक्सी या कैब या स्थानीय बसें भी ले सकते हैं। गंतव्य तक पहुँचने के लिए साझा टैक्सियाँ भी एक उपलब्ध विकल्प हैं।